Today I would like to talk to you all about a very sensitive topic about which people still have hesitancy to talk in public .
Yes ! I would like to talk about the taboo-‘Periods’
Generally People think ,This is a woman oriented subject and a very private matter . slowly but surely things are changing for the good.
As a matter of fact movies like ‘Padman’ have brought a change in the mindset of Indian people but this change is limited to the towns and metro cities.
In the meanwhile there is a change observed in the Education system of schools in India and girls from classes 5 to 9 sometimes even class 10th are also being educated on various aspects related to this topic . Like Why , when and how does this happen ? how to deal with it ?what all precautions should a girl take during this time ? What all things or products can she use to comfort herself ? How to maintain the personal hygiene during this period as well as in her normal daily routine too. furthermore, they are told about what all changes take place in their body during Adolescence . All the information is provided to these young girls in a Conducive atmosphere , Which enables them to be at ease with this big life changing event .Mainly the educators agenda is to make the girls feel good about themselves and not create a fear or aversion of periods.
I recall the days when I was in eighth grade (would like to tell you here that , we used to get the periods at the age of 13 to 15 then ; which Now is 8 to 13 years) I am talking about the year 1984-85.So, on one fine Sunday when me and my mom were alone , my mum told me about it. After listening to her I started laughing! Startled, she gave me a look and asked ,”Are you aware about this ? how is it that you are laughing ,when I told your sister about this, she burst into tears.” I assured her that it was the very first time that I heard about this and frankly, I still don’t know why I laughed. later my mom told me that when one of our relatives daughter got it first time , and her mom helped her how to use the pad, she was so scared that she started screaming and said, “how will I walk now.”
The reason why I am telling you all this , is that every person has a different way of reacting. During that time we were not very open about it with our friends too . I remember I never discussed about any such topics , Words like “periods or “bras” never found their ways to our discussions. Even me and my elder sister never spoke about any such topics ,but now when I see my daughters , they’re having ease to talk on any of the subjects and this ease in communication gives me immense satisfaction , that we are lucky enough to give our children ; the atmosphere in which they can freely talk and get right knowledge . It just makes me realize how healthy it is to openly communicate with each other about such hushed up issues.
I remember very well that , even my science teacher didn’t teach us the lesson of “Human Reproductive System”. She told us ,”this chapter, you can read on your own. It is very easy and doesn’t need any explanation.”
Well, when the time came for both my daughters ; I prepared myself in advance and explained them about everything and both of them understood it quite well and very easily and happily adapted to the situation.
In today’s fast changing world scenario , women are coming forward and breaking the glass ceiling in every aspect of life. In achieving this goal they have to stay away from home for a longer duration. To comfort them during this time there are not just sanitary pads but also a large variety of different products available in the market. However, these so called comfortable products are in some way or the other harmful for our body as well as the environment. Ladies are facing a lot of problems like rashes , burning sometimes itching too , after using these products and many of them end up suffering from UTIs too. Even sometimes using these products for longer duration may lead to cervical cancer.
Like our body, these products are harmful for the environment too . These products are basically plastic based , so while destroying, it emits poisonous gases , which are very harmful to the environment . Due to its plastic content, its not decomposed easily.
This is an alarm, and we should be more alert/vigilant and attentive to ourselves as well as to the environment . There are many alternative products which are user-friendly as well as less harmful to the environment. In this list menstrual cup is the top priority . Along with this , there are biodegradable as well as reusable pads are also available. The biodegradable pads are basically made of banana fiber and the reusable ones are made of soft clothes and they are very gentle on the skin.
So, the choice is up to you ; how will you take care of your health and the environment?
Today, more and more people are trying to talk about this taboo word but there is always room for improvement. As it is always said: charity begins at home. So, it is my request to all you readers to discuss such issues freely at home, especially with your male family members and make the world a better, more free and open space.
HINDI
आज मैं आप सभी से कुछ बातें करना चाहती हूँ ।एक ऐसे संवेदनशील विषय पर जिसकी सार्वजनिक तौर पर चर्चा ही नहीं होती ।
जी हाँ ! मैं बात करना चाहती हूँ periods यानी महावारी के विषय में ।
यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में सर्वसामान्य लोग आज भी खुलकर बात करने से कतराते हैं । यह एक स्त्री जन्य विषय है जिसके बारे में पुरूषों से या उनके सामने भी बात करना निषिद्ध है। हाँ ! यह बात और है कि Padman जैसी movies ने समाज में कुछ हद तक परिवर्तन लाया है परंतु यह परिवर्तन सिर्फ़ बड़े और मेट्रो शहरों तक ही सीमित है , आज भी छोटे शहरों और गांवों में इस पर चर्चा नहीं की जाती है । परंतु आज के परिवर्तनशील समाज में स्कूलों में इस विषय पर कक्षा 5-9 तक या कई बार दसवी तक की लड़कियों को( सिर्फ़ लड़कियों को ही हं!) भी इस विषय पर सटीक जानकारी दी जाती है । ये क्यों होता है , कब होता है , कैसे होता है और पीरियड्स होने पर क्या करना चाहिए ? साथ ही बरती जाने वाली सावधानियों के साथ , इस समय उपयोग में आने वाली वस्तुएँ आदि सभी बातों की सिलसिलेवार जानकारी दी जाती है । साथ ही इन वस्तुओं का उपयोग कैसे करना है इन वस्तुओं के फ़ायदे और नुक़सान क्या हैं? इन दिनों शारीरिक साफ़ सफ़ाई कैसे रखें ? या रोज़मर्रा के जीवन में भी अपने शरीर की स्वच्छता के प्रति कैसे जागरूक रहे, इस बारे में भी बताया जाता है।
इस सबके साथ ही periods के कारण शरीर में होने वाले बदलावों पर भी चर्चा की जाती है और इस सबकी जानकारी को एकदम से ही नहीं ; धीरे धीरे कर बच्चियों को दी जाती है , अन्यथा उनके डर जाने की संभावना रहती है । जिसे कुछ बच्चियाँ मानसिक रूप से स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होती हैं ।
मुझे याद है जब मैं ख़ुद आठवी में थी (हमारे समय में पीरियड की शुरुआत की उम्र 13-15 वर्ष की होती थी ; जो आज घटकर 8-13 साल हो गयी है । ) हाँ ! तो जब मैं आठवी कक्षा में थी अर्थात तेरह साल की हो चुकी थी तब एक रविवार को मेरी माँ ने मुझे , शाम को जब हम दोनो घर में अकेले ही थे तब धीरे से इस विषय में जानकारी दी , जिसे सुनकर मेरी हँसी छूट गई ; तब मम्मी ने पूछा ,”क्या तुम्हें पहले से ही इस बारे में जानकारी थी , जो हँसी आ रही है ? तुम्हारी दीदी की तो रुलाई फूट पड़ी थी ।” तब मैंने कहा , “ नहीं माँ! मैं यह सब पहली बार ही सुन रही हूँ ।” *वहीं बाद में माँ ने बताया कि किस तरह से हमारे एक परिचित की बेटी इस परिवर्तन से अनभिज्ञ थी और जब उसे periods शुरू हुए तो कपड़े के pad जो उस समय उपयोग में लाए जाते थे ; लगाने पर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी कि ,” हाय! अब मैं कैसे चल पाऊँगी?”* (यह सब बताने का तात्पर्य ये है कि प्रत्येक व्यक्ति का react करने का तरीक़ा अलग-अलग होता है ।)
यह बात होगी सन् 83-84 की शुरुआत के समय की , जब न तो सहेलियों से इस विषय पर चर्चा होती थी और न ही कोई और होता था ऐसे विषयों पर बात करने को । Even मेरी अपनी बड़ी बहन से भी ऐसे किसी विषय पर चर्चा नहीं होती थी। पर आज अपनी दोनों बेटियों को किसी भी विषय पर बड़ी सहजता से चर्चा करते देखती-सुनती हूँ तो मन को कहीं न कहीं सुकून मिलता है ।यह बात दीगर है कि हमें उस ज़माने में न तो इतना एक्सपोजर था और न ही विचारों में इतना खुलापन था कि हम इस विषय पर चर्चा ही कर सकें ।
यहाँ तक कि हमारी विज्ञान की शिक्षिका ने भी मनुष्य के प्रजनन प्रणाली अर्थात Human reproduction का lesson हमें नहीं समझाया था और बोला था कि यह chapter आप लोग ख़ुद से ही पढ़ लें इसमें समझाने जैसा कुछ नहीं है । ख़ैर !
जब मुझे मेरी बेटियों को इस विषय में बताने की बारी आयी तो मैंने ख़ुद को पहले से ही तैयार कर लिया था और बड़ी ही आसानी से मेरी दोनों बेटियों ने मेरी बात बतायी बातों को समझा और दिए गए दिशा-निर्देशों का ध्यान में रखा ; साथ ही बड़ी सरलतापूर्वक परिस्थिति को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कर लिया ।
आज के परिपेक्ष्य अर्थात perspective से देखें तो स्त्रियों की स्थिति में काफ़ी परिवर्तन आया है ,जहाँ पहले वे घर में ही सिमटकर रहती थी ; वहीं आज सच्चे अर्थों में वह पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं और इसके लिए उन्हें पहले से ज़्यादा समय घर से बाहर गुज़ारना पड़ता है , ऐसे में periods के टाइम पर उन्हें कम से कम परेशानी का सामना करना पड़े इसके लिए विभिन्न प्रकार के सैनिटरी पैड्स के साथ ही बाज़ार विभिन्न उत्पादों अर्थात products से भरा पड़ा है । ये सारे उत्पाद तथाकथित तौर पर आरामदेह तो होते हैं *परंतु कहीं न कहीं ये सारे उत्पाद हमारे शरीर और साथ ही पर्यावरण के लिए भी नुक़सानदायक होते हैं।कई स्त्रियों को इन उत्पादों के इस्तेमाल से rashes, burning, itching जैसी कई समस्याएँ होती हैं।तो वहीं कईयों को UTI की समस्या का सामना भी करना पड़ता है । ऐसा भी सुनने में आया है कि इन उत्पादों का ज़्यादा इस्तेमाल करने से आगे जाकर शरीर में cancer होने की संभावना बढ़ जाती है।
शरीर पर होने वाले दुष्परिणामों के साथ ही ये सारे उत्पाद पर्यावरण को भी बहूत नुक़सान पहुँचाते हैं। चूँकि मुख्य रूप से ये सभी उत्पाद प्लास्टिक से निर्मित होते हैं इन्हें नष्ट करते समय इनसे निकलने वाली ज़हरीली गैस पर्यावरण को दूषित करती है अतः अब हमें अपने प्रति और अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक होना आवश्यक हो गया है। इसके लिए ऐसे विकल्पों का उपयोग करना चाहिए जिससे हमारे शरीर के साथ ही पर्यावरण को भी न के बराबर नुक़सान हो ।*
इस दिशा में आजकल menstrual cup सबसे ज़्यादा चर्चित है । इसके साथ ही कपड़ों से बने reusable अर्थात बार- बार उपयोग किए जा सकने वाले पैड ; जो पहले से ज़्यादा अच्छी quality अर्थात गुणवत्ता के साथ बने होते हैं , का भी उपयोग किया जा रहा है । *या फिर biodegradable pads का उपयोग करना चाहिए , जो केले के रेशे इत्यादि से बनते हैं और नष्ट करने के समय पर्यावरण को भी हानि नहीं पहुँचाते ।
बाज़ार में बहूत से ऐसे उत्पाद मौजूद हैं जो हमारे शरीर को और पर्यावरण को नुक़सान नहीं पहुँचाते अब choice आपकी है कि आप किस तरह अपनी और पर्यावरण की सेहत का ध्यान रखें ।*
तो मेरी आप सभी से यह गुज़ारिश है कि आप भी जागरूक बने और पर्यावरण की सुरक्षा में सहयोग दें , साथ ही अपने घर के पुरुषों और लड़कों को भी periods के विषय में अवगत कराएं ; जिससे कि वे लड़कियों के प्रति संवेदनशील रहें ।
MARATHI
आज मी आपल्याशी अशा संवेदनशील विषयावर बोलू इच्छिते ज्याबद्दल सार्वजनिकपणे चर्चा केली जात नाही.
मला आज ‘मासिक पाळी‘ बद्दल बोलायचे आहे।सामान्यत: लोकांना असे वाटते की हा एक स्त्रीभिमुख विषय आहे आणि हा त्यांचा एक अतिशय खाजगी विषय आहे । म्हणूनच या विषयावर खुलुन कुणीच बोलत नाही ।
वस्तुतः पॅडमॅनसारख्या चित्रपटांनी भारतीय लोकांच्या मानसिकतेत बदल घडवून आणला आहे परंतु हा बदल फक्त मोठी शहरे व मेट्रो शहरांपुरता मर्यादित आहे। लहान शहरे आणि खेड्यांमध्ये पाळीविषयी आजही चर्चा होत नाही।
आज या बदलत्या समाजात भारतातील शाळांच्या शैक्षणिक पद्धतीत बदल दिसून येत आहे आणि इयत्ता 5 ते 9 पर्यंतच्या व कित्येकदा दहावीच्या मुलींना ही या विषयाशी संबंधित विविध बाबींवर शिक्षण दिले जाते.
हे केव्हा ,कसे आणि का होतं? मासिक पाळी येते, त्या वेळी कोणत्या सावधगिरी बाळगल्या पाहिजेत? या कालावधीत तसेच त्त्यांच्या सामान्य दैनंदिनीत वैयक्तिक स्वच्छता कशी ठेवावी ? त्याच सोबत मुलींनी यावेळी, वापरात येणार्या वस्तूंसह प्रत्येक गोष्टीवर पद्धतशीर माहिती दिली जाते.
यासह, मासिक पाळीमुळे शरीरातील बदलांची देखील चर्चा केली जाते। ही सर्व माहिती या तरुण मुलींना अश्या प्रकारे दिली जाते ,जेणे करुन या कोवळ्या मनांवर विपरीत परिणाम घडू नये । मुलींना मासिक पाळीची भीती वाटू नये ।
आणि त्यांना या आयुष्य बदलणार्या मोठ्या घटनेवर सहजतेने आत्मसात करता येईल ।मुख्यतः शिक्षकांचा हेतु म्हणजे मुलींना स्वतःबद्दल चांगले वाटावे आणि त्यांच्यात मासिक पाळी बद्दल भीती न वाटणे किंवा काही पूर्वाग्रह न बाळगावे , हाच असतो ।
मला चांगलेच आठवतं , 1984-85 साली जेव्हा मी आठवीत होते ,(आपणास येथे सांगायचे आहे की त्या काळी periods ची सुरूआत 13 ते 15 वयाच्या कालावधीत व्हायची ते आता 8 ते 13 वर्षांचा कालावधी होत आहे ।) एके दिवशी जेव्हा मी आणि माझी आई घरात एकटेच होतो; मग आईने मला मासिक पाळीविषयी तपशीलवार माहिती दिली. मी तिला हसण्यास सुरवात केली। आणि या वर तिने मला रोखून माझ्याकडे बघितले ; आणि विचारले की तुला हे आधीपासूनच ठाऊक आहे का ? कारण जेव्हा मी तुझ्या ताईला याबद्दल सांगितले तेव्हा ती रडु लागली होती ।
मी तिला आश्वास्त केले की मी याबद्दल प्रथमच ऐकते आहे आणि आजवर स्पष्टपणे मला ही माहित नाही की मी तेव्हां का हसले?
नंतर माझ्या आईने मला सांगितले की जेव्हा आमच्या एखाद्या नातेवाईक मुलीला ती प्रथमच पाळी आली आणि तिच्या आईने तिला पॅड कसे वापरावे यासाठी मदत केली तर , ती चक्क घाबरली , आरडाओरडा करू लागली आणि म्हणाली की आता मी कसे चालेन ।
मी हे सर्व सांगण्या मागचे कारण म्हणजे एकच कि प्रत्येक व्यक्तीची प्रतिक्रिया करण्याची पद्धत वेगळी असते ।
त्या काळात आम्ही आमच्या मैत्रीणिंन समवेत याबद्दल फारसे बोलत नव्हतो ।मला आठवते की मी पीरियड्स किंवा ब्रासारख्या विषयांबद्दल मैत्रीणिंन सोबत कधीही चर्चा केली नाही ।मी आणि माझ्या मोठ्या बहिण सुद्धा कधीही अशा कोणत्याही विषयाबद्दल बोललो नाहीत ।
पण आता जेव्हा मी माझ्या मुलींना पाहते की त्या कोणत्याच विषयावर बेधडक बोलतात , अश्या प्रकारे त्यांच मुक्तपणे संवाद साधणे हे मला खूप समाधान देतं कि आम्ही
आमच्या मुलांना असे वातावरण देऊ शकलो , जिथे त्या सहजतेने आणि मोकळेपणाने बोलू शकतात आणि योग्य ते ज्ञान मिळवू शकतात।
मला हे ही अगदी चांगलेच आठवते की आमच्या विज्ञान शिक्षिके ने सुद्धा आम्हाला ‘ Human Reproduction System’ चा धडा शिकविला नाही ।त्या म्हणाल्या कि , हा अध्याय तुम्ही स्वतःच वाचू शकता हे अगदी सोपे आहे आणि यांत कोणत्याही स्पष्टीकरणाची आवश्यकता नाही।
बरं !! जेव्हा माझ्या दोन्ही मुलींची पाळीची वेळ आली तेव्हा मी स्वत: ला अगोदर तयार केलं ,
याबद्दल सर्व काही त्यांना समजावून सांगितले आणि त्या दोघींनीही हे अगदी चांगले समजून घेतले आणि अगदी सहज आणि वेळ आल्यावर आनंदाने सामोरी गेल्या।
आजच्या वेगवान व बदलत्या जागतिक परिस्थितीत स्त्रिया घराबाहेर पुरुषांसमवेत विश्वासाने चालत आहेत. आजच्या स्त्रियां पुढे येऊन जीवनाच्या प्रत्येक पातळींवर ऊंची गाठत आहेत, हे लक्ष्य साध्य करण्यासाठी त्यांना जास्त काळ घरापासून दूर रहावे लागते।
अशा परिस्थितीत, मासिक पाळीच्या वेळी त्यांना कमीतकमी समस्यांना सामोरे जावे लागेल यासाठी, बाजारात वेगवेगळ्या प्रकारचे सॅनिटरी पॅड आणि भिन्न उत्पादने आहेत ज्यामुळे त्यांना आराम मिळू शकेल.
तथापि ही तथाकथित आरामदायक उत्पादने एक प्रकारे आपल्या शरीरासाठी तसेच वातावरणासाठी हानिकारक आहेत।
बर्याच स्त्रियांना ह्या उत्पादनांच्या वापरामुळे पुरळ उठणे ,खाज सुटणे , उलणे इत्यादि त्रास होतात , तर अनेक जणींना UTI सारख्या गंभीर समस्येचा सामना करावा लागतो.
जरी कधीकधी या उत्पादनांचा दीर्घ कालावधीसाठी वापर केल्यास गर्भाशयाच्या ग्रीवेचा कर्करोग होऊ शकतो।
आमच्या शरीराप्रमाणेच ही उत्पादने पर्यावरणासाठी ही हानिकारक आहेत , ही उत्पादने मुळात प्लास्टिक-आधारित असतात म्हणून ती नष्ट करताना विषारी वायू उत्सर्जित होतो; जे पर्यावरणासाठी अत्यंत हानिकारक आहे। त्याच्या प्लास्टिकच्या सामग्रीमुळे ते सहजपणे विघटित होत नाही ।
म्हणूनच, आता आम्हाला आपल्या शरीराबद्दल तसेच आपल्या वातावरणाविषयी जागरूक असणे आवश्यक आहे, आपण अशा उत्पादनांचा वापर केला पाहिजे ज्यामुळे आपल्या शरीराचे आणि वातावरणाचे नुकसान न होवो ।
अशी अनेक पर्यायी उत्पादने आहेत जी वापरकर्त्यासाठी अनुकूल आहेतच त्यांच सोबत पर्यावरणाला कमी हानीकारक आहेत या यादीमध्ये Menstrual cup ह्याला सर्वोच्च प्राधान्य आहे । यासह biodegradable , पुनर्उपयोगी पॅड बाजारात उपलब्ध आहेत।
biodegradable पॅड मुळात केळ्याच्या रेश्यांपासून बनविलेले असतात व पुनर्उपयोगी पॅड, ते तलम कपड्याने बनलेले असतात आणि वारंवार उपयोग करुनही ते त्वचेवर अतिशय मऊ असतात ।
तर हा निर्णय आपल्यावर अवलंबून आहे की आपण आपल्या आरोग्याची आणि वातावरणाची काळजी कशी घ्याल ।
मी आपणा सर्वांना विनंती करते की आपण निरोगी रहा आणि पर्यावरणाचे रक्षण करण्यात मदत करा । तसेच आपणास विनंती आहे कि घरातील पुरुष व मुलांशी मासिक पाळी विषयांवर मुक्तपणे चर्चा करा ,माहिती द्या जेणेकरून ते मुलींविषयी संवेदनशील बनतील आणि आपल्या ह्या प्रयत्नां मुळे हे जग अधिकच सुंदर बनेल।
Hi,
My NGO, Women and Young People’s Awareness Initiative (WAYAI) works with girls’ and young women at schools and communities on menstrual health hygiene and rights.
We are interested in championing the cause to stop period poverty: also advocate for menstrual health clinics in hospitals and getting Legislation on this very sensitive and all important subject.
We will need your input, and possibly materials for more informational on this.
Thank you,
Jennifer.
Good one!! Yes, communication about these topics is very important..
Very well written! I agree with your outlook and I hope that more men, specially fathers and daughters get more comfortable with this topic.
Wow.. such an interesting and mind-opening read. Had a great time reading it 😍😊
Very well written 👏👍. Having two sisters at home helped me understand not only this but also the emotional changes they face during this time and also how to handle them. I make sure not to annoy my sisters or quarrel with them during this time. 🤗
Thank you kajal